शोध का उद्देश्‍य

 हमारे द्वारा किये जाने वाले तमाम कार्यों के पीछे कोई न कोई उद्देश्‍य होता है। कार्य की सफलता के लिए संसाधनों की उपलब्‍धता, व्‍यक्ति की मेहनत और सही राह के चुनाव के साथ ही उद्देश्‍य की स्‍पष्‍टता भी जरूरी है। उद्देश्‍य की अस्‍पष्‍टता या संशय कार्य की सफलता पर प्रश्‍न चिह्न लगा देता है। 

विभिन्‍न दार्शनिक मतों में जीवन के उद्देश्‍य पर विचार किया गया है। भारतीय साहित्‍य चिंतन परंपरा में काव्‍य-प्रयोजन यानी साहित्‍य रचना के उद्देश्‍यों पर भी विस्‍तृत विचार विमर्श किया गया है। भरत मुनि ने नाट्यशास्‍त्र में काव्‍य का प्रयोजन बताते हुए लिखा है- 

दुःखार्तानां श्रमार्तानां शोकार्तानां तपस्विनाम्। 

विश्रान्तिजननं काले नाट्यमेतद्भविष्यति॥ 

हिंदी अनुवाद- यह नाट्य दुख से, थकावट से तथा शोक से पीडि़त दीन-दुखियों के लिए विश्राम देने वाला होगा।

धर्म्यं यशस्यमायुष्यं हितं बुद्धिविवर्धनम्। 

लोकोपदेशजननं नाट्यमेतद्भविष्यति॥

हिंदी अनुवाद- यह नाट्य धर्म, यश और आयु का संवर्धक, हितकारी, बुद्धि का विकास करने वाला तथा संसार को उपदेश देने वाला होगा।

भामह ने काव्‍यालंकार के शुरू में ही काव्‍य का उद्देश्‍य बताते हुए लिखा है-

धर्मार्थकाममोक्षेषु वैचक्षण्यं कलासु च।

प्रीतिं करोति कीर्तिं च साधुकाव्यनिबन्धनम्।।

अर्थात अच्‍छे काव्‍य से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति व कलाओं में निपुणता के साथ यश और आनंद की प्राप्ति होती है। 

बाद के आचार्यों ने भी काव्‍य या साहित्‍य के उद्देश्‍यों पर विचार किया है। संस्‍कृत परंपरा में भरत और भामह के अलावा वामन, दण्‍डी, मम्‍मट, रुद्रट, भोजराज, कुंतक आदि ने अपने लेखन के दौरान साहित्‍य के उद्देश्‍यों की चर्चा की है। इस चर्चा में काव्‍य के निम्‍नलिखित उद्देश्‍य सामने आते हैं-

1. यश की प्राप्ति

2. धन की प्राप्ति

3. आनंद की अनुभूति

4. व्‍यवहार ज्ञान

5. लोकमंगल

6. आत्‍मशांति

7. उपदेश

8. रोग मुक्ति

कबीर, तुलसी, जायसी, सूरदास, देव, केशव, बिहारी, घनानंद, मैथिलीशरण गुप्‍त आदि हिंदी साहित्‍यकारों ने भी अपने लेखन में प्रत्‍यक्ष या परोक्ष रूप से साहित्‍य के उद्देश्‍य पर बात की है। प्रेमचंद का तो मशहूर निबंध ही है- साहित्‍य का उद्देश्‍य। रामचंद्र शुक्‍ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, नंददुलारे वाजपेयी आदि ने भी साहित्‍य के उद्देश्‍यों को परिभाषित किया है। पाश्‍चात्‍य चिंतन परंपरा में प्‍लेटो, अरस्‍तू, लोंजाइनस, दांते आदि ने साहित्‍य के उद्देश्‍यों पर विचार किया है।

जिस तरह से साहित्‍य चिंतन की दुनिया में प्रवेश करते वक्‍त हम काव्‍य-प्रयोजन या साहित्‍य के उद्देश्‍यों पर दृष्टिपात करते हैं, वैसे ही शोध की दुनिया में प्रवेश करते वक्‍त हमारे मन में शोध के उद्देश्‍य भी स्‍पष्‍ट होने चाहिए। शोध के उद्देश्‍यों को निम्‍नलिखित बिंदुओं में विभाजित कर समझा जा सकता है-

1. सत्‍य की खोज- शोध का मूलभूत उद्देश्‍य सत्‍य की खोज करना है। 

2. नए तथ्‍यों की खोज

3. तथ्‍यों का संकलन

4. प्राप्‍त तथ्‍यों का विश्‍लेषण- 

5. तथ्‍यों की तुलना-

6. विचारों का विश्‍लेषण-

7. विचारों की तुलना-

8. समस्‍या का समाधान-

9. व्‍यक्ति, विचार या घटना के विविध आयामों को समझना व समझाना

10. सिद्धांत निर्माण

11. कार्य-कारण संबंधों की पड़ताल

12. ज्ञान का विस्‍तार

13. जिज्ञासा व संशय का निवारण

14. अवधारणाओं को समझना

15. प्रवृत्ति विश्‍लेषण

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