ओलंपिक में भारत के पहले गोल्‍ड मेडल की कहानी


भारत को पहला गोल्‍ड मेडल 1928 के एम्‍सटर्डम ओ‍लंपिक खेलों में मिला। यह मेडल हॉकी की टीम ने जीता। उस टीम के कप्‍तान थे जयपाल सिंह। पूरी टीम इस प्रकार थी- Jaipal Singh (captain), Broome Eric Pinninger (vice-captain), Syed M Yusuf, Richard J Allen, Michael E Roeque, Leslie C Hammond, Rex A Norris, William John Goodsir-Cullen, Kehar Singh Gill, Maurice A Gateley, Shaukat Ali, George E Marthins, Dhyan Chand, Feroze Khan and Frederick S Seaman

ओलंपिक में शामिल होने के लिए 10 मार्च 1928 को जब भारत की हॉकी टीम बंबई बंदरगाह से रवाना हुई तो उसे विदा करने के लिए केवल तीन लोग बंदरगाह पर पहुंचे- भारतीय हॉकी महासंघ के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष, उपाध्‍यक्ष और एक पत्रकार। वही टीम जब गोल्‍ड मेडल जीतकर लौटी तो पूरे देश ने स्‍वागत किया। टीम की अगवानी के लिए बडे़-बड़े नेता और प्रतिष्ठित व्‍यक्ति पहुंचे। एम्‍सटर्डम ओलंपिक में भारत की हॉकी टीम में कुल 16 खिलाड़ी शामिल हुए। इनमें से 13 खिलाड़ी भारत से रवाना हुए। शेष 3 खिलाड़ी- जयपाल सिंह, नवाब पटौदी और एसएम खान इंग्‍लैंड से भारतीय टीम के साथ जुड़े। टीम 20 दिन तक इंग्‍लैण्‍ड में रुकी जहां जयपाल सिंह के नेतृत्‍व में टीम ने अच्‍छी प्रैक्टिस की। इस दौरान इस नई टीम ने एक मैच के दौरान स्‍वयं इंग्‍लैण्‍ड की टीम को 4-0 से शिकस्‍त दे दी। इससे टीम जोश से भर गई। उल्‍लेखनीय है कि इंग्‍लैण्‍ड 1908 और 1920 के ओलंपिक में हॉकी में गोल्‍ड मैडल जीत चुका था। अपने उपनिवेश भारत से मिली इस हार से इंग्लैंड इतना विचलित हुआ कि उसने उस ओलंपिक में अपनी हॉकी टीम ही खेलने नहीं भेजी।

ओलंपिक में शामिल होने वाली भारतीय टीम के कप्‍तान जयपाल सिंह थे जो छोटा नागपुर के मुंडा समुदाय से थे। ईसाई मिशनरी उनकी प्रतिभा को देखते हुए बचपन में ही उन्‍हें अपने साथ इंग्‍लैंड ले गए थे। वहां उन्‍होंने स्‍थानीय स्‍कूलों से लेकर ऑक्‍सफोर्ड तक से पढाई की। पढाई के दौरान उनकी रुचि हॉकी में भी पैदा हुई और देखते-देखते वे इंग्‍लैंड में एक बेहतरीन हॉकी खिलाड़ी के रूप में लोकप्रिय हो गए। मशहूर मैगजीन 'वर्ल्‍ड हॉकी' में उनके बारे में विस्‍तार से छपा। वे विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में खेल संबंधी कॉलम लिखने लगे। जयपाल सिंह हॉकी से इतना प्‍यार करते थे कि जब भारतीय टीम एम्‍सटर्डम ओलंपिक में खेलने के लिए जा रही थी तो वे अपनी अपनी इंडियन सिविल सर्विसेज की ट्रेनिंग बीच में ही छोड़कर टीम में शामिल हो गए और टीम का सफल नेतृत्‍व कर भारत को गोल्‍ड मैडल दिलाया और सबको चौंका दिया। जब वे वापस लौटे तो उनसे इंडियन सिविल सर्विसेज की उस साल की ट्रेंनिंग को रिपीट करने के लिए कहा गया। इस बात से आहत होकर उन्‍होंने सिविल सर्विसेज की ट्रेंनिंग बीच में ही छोड़ दी और वे वापस भारत आ गए। यहां आकर उन्‍होंने जीवनपर्यंत आदिवासियों के लिए काम किया और आदिवासियों के एक सम्‍मानित नेता के रूप में ख्‍यान हुए। 1928 के एम्‍सटर्डम ओलंपिक में भारत की हॉकी टीम ने न केवल गोल्‍ड मैडल जीता बल्कि वह पूरी प्रतियोगिता के दौरान अजेय रही! उसने प्रतियोगिता में कुल 29 गोल किये और उसके खिलाफ कोई भी टीम एक भी गोल नहीं कर सकी। भारत से सारे मैच और उनके परिणाम इस प्रकार हैं-

17 मई 1928

भारत बनाम ऑस्‍ट्रिया - भारत ने 6-0 से जीता

18 मई 1928

भारत बनाम बेल्‍जियम- भारत ने 9-0 से जीता

20 मई 1928

भारत बनाम डेनमार्क- भारत ने 5-0 से जीता

22 मई 1928

भारत बनाम स्‍विट्जरलैंड- भारत ने 6-0 से जीता

26 मई 1928 (फाइनल)

भारत बनाम नीदरलैंड (मेजबान)- भारत ने 3-0 से जीता

इस स्‍वर्णिम इतिहास को क्‍यों नहीं किताबों में पढ़ाया जाता?

क्‍या सिर्फ इसलिए कि भारत की उस ऐतिहासिक टीम की कप्‍तानी एक आदिवासी जयपाल सिंह कर रहे थे?

यह दुर्भाग्‍यपूर्ण है कि हॉकी के इतने बड़े खिलाड़ी और आदिवासियों के इतने बड़े नेता को इतिहास की किताबों से गायब कर दिया गया।

#WorldOlympicDay



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