आदिवासी साहित्य की बुनियादी शर्त उसमें आदिवासी दर्शन का होना है जिसके मूल तत्व हैं -
- प्रकृति की लय-ताल और संगीत का जो अनुसरण करता हो।
- जो प्रकृति और प्रेम के आत्मीय संबंध और गरिमा का सम्मान करता हो।
- जिसमें पुरखा-पूर्वजों के ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल और इंसानी बेहतरी के अनुभवों के प्रति आभार हो।
- जो समूचे जीव जगत की अवहेलना नहीं करें।
- जो धनलोलुप और बाजारवादी हिंसा और लालसा का नकार करता हो।
- जिसमें जीवन के प्रति आनंदमयी अदम्य जिजीविषा हो।
- जिसमें सृष्टि और समष्टि के प्रति कृतज्ञता का भाव हो।
- जो धरती को संसाधन की बजाय मां मानकर उसके बचाव और रचाव के लिए खुद को उसका संरक्षक मानता हो।
- जिसमें रंग, नस्ल, लिंग, धर्म आदि का विशेष आग्रह न हो।
- जो हर तरह की गैर-बराबरी के खिलाफ हो।
- जो भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और आत्मनिर्णय के अधिकार पक्ष में हो।
- जो सामंती, ब्राह्मणवादी, धनलोलुप और बाजारवादी शब्दावलियों, प्रतीकों, मिथकों और व्यक्तिगत महिमामंडन से असहमत हो।
- जो सहअस्तित्व, समता, सामूहिकता, सहजीविता, सहभागिता और सामंजस्य को अपना दार्शनिक आधार मानते हुए रचाव-बचाव में यकीन करता हो।
- सहानुभूति, स्वानुभूति की बजाय सामूहिक अनुभूति जिसका प्रबल स्वर-संगीत हो।
- मूल आदिवासी भाषाओं में अपने विश्वदृष्टिकोण के साथ जो प्रमुखतः अभिव्यक्त हुआ हो।